भारत के संविधान की मुख्य विशेषताएं
Salient features of Indian Constitution
संविधान का अर्थ
• किसी राज्य का संविधान मूल सिद्धांतों या स्थापित परंपराओं का एक मौलिक समूह होता है जिसके आधार पर राज्य के द्वारा शासन का संचालन किया जाता है।
• यह सरकार की संस्थाओं के संगठन, शक्तियों और सीमाओं के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों के मध्य एक संतुलन की तरह कार्य करता है।
• यह देश के सर्वोच्च कानून के रूप में भूमिका निभाता है, जो सरकार के कामकाज, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की सुरक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
• किसी देश का संविधान उस देश की शासन व्यवस्था को सुगमतापूर्वक एवं सुचारू रूप से चलाने वाले बुनियादी नियमों एवं विनियमों का संग्रह होता है। इसे देश की ‘आधारभूत विधि’ कहा जा सकता है।
• यह राज्य के मुख्य अंगों की शक्तियों को परिभाषित करता है, उनके उत्तरदायित्वों का निर्धारण करता है और उनके पारस्परिक संबंधों तथा जनता के साथ संबंधों को विनियमित करता है।
भारत का संविधान
• भारत का संविधान भारतीय गणराज्य का सर्वोच्च कानून है।
• यह देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए रूपरेखा तैयार करता है, सरकार की संस्थाओं की शक्तियों एवं उत्तरदायित्वों को परिभाषित करता है।
• संविधान के द्वारा मौलिक अधिकारों की रक्षा के साथ- साथ शासन के सिद्धांतों को भी रेखांकित किया जाता है।
• संविधान में देश के प्रशासन का मार्गदर्शन करने वाले नियमों और विनियमों का एक समूह होता है।
• यह देश का सर्वोच्च कानून है, जिससे उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों (नागरिकों) के आापसी संबंध तय होने के साथ-साथ लोगों व सरकार के तथा विभिन्न राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार के मध्य आपसी संबंध निर्धारित/तय होते हैं।
• भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जिसका निर्माण भारतवासियों की एक संविधान निर्मात्री सभा द्वारा किया गया।
संविधान निर्माण
• संविधान नियमों, उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज होता है, जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है।
• प्रत्येक संविधान, उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का दर्पण होता है।
• संवैधानिक विधि देश की सर्वोंच्च विधि होती है तथा सभी अन्य विधियाँ इसी पर आधारित होती हैं।
• संविधान, देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। संविधान राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों का तथा दायित्वों का सीमांकन करता है। यह जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन भी करता है।
संविधान निर्मात्री सभा जनप्रतिनिधियों की वह सभा थी, जिसने भारत का संविधान लिखने का कार्य सम्पन्न किया।
• संविधान सभा सिद्धान्त का सर्वप्रथम विचार बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार सन् 1895 के ‘स्वराज्य विधेयक’ में व्यक्त हुआ था।
वर्ष 1922 में एनीबेसेंट की पहल पर केन्द्रीय विधान मंडल के दोनों सदनों के सदस्यों की एक संयुक्त बैठक शिमला में आयोजित की गयी, जिसमें संविधान सभा के प्रश्न पर विचार करने के लिए सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया गया।
• जनवरी, 1925 में दिल्ली में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के समक्ष ‘कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल’ को प्रस्तुत किया गया, जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी। उल्लेखनीय है कि भारत के लिए एक संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करने का यह प्रथम प्रयास था।
1924 में मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष संविधान सभा के निर्माण की माँग प्रस्तुत की थी।
• मई 1928 में बंबई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में भारत के संविधान के सिद्धांत निर्धारित करने के लिए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक 8 सदस्यीय समिति (नेहरू समिति) गठित की गई ।
• इस समिति की अगस्त,1928 में प्रस्तुत रिपोर्ट को ‘नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से भी जाना जाता है।
संविधान सभा के विचार का प्रतिपादन वर्ष 1934 में वामपंथी आंदोलन के प्रखर नेता और क्रांतिकारी जनवाद के पैरोकार एम.एन. रॉय ने किया।
1935 में भारतीय राष्टीय कांग्रेस ने भारत के संविधान के निर्माण के लिए प्रथम बार अधिकारिक रूप से संविधान सभा के गठन की मॉग को अपनी अधिकृत नीति में शामिल किया
कांग्रेस ने 1936 के लखनऊ अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर घोषणा कि थी कि “किसी बाहरी सत्ता द्वारा थोपा गया कोई भी संविधान भारत में स्वीकार नहीं किया जायेगा।”
1938 में काँग्रेस की ओर से पंडित जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की कि स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी हुई संविधान सभा द्वारा किया जाएगा और इसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं होगा।
• 8 अगस्त, 1940 के अगस्त प्रस्ताव में नेहरू की इस मॉग को वायसराय लिनलिथगो द्वारा मान लिया गया। इस प्रकार पहली बार ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा की माँग और भारतीयों द्वार इसके निर्माण को स्वीकारा । उस समय ब्रिटेन में बहुदलीय सरकार थी।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की उपरोक्त माग के संबंध में 23 मार्च, 1942 को क्रिप्स मिशन को भारत भेजा, जिसने यह प्रस्ताव दिया कि भारतीय संघ का संविधान बनाने हेतु ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासतों द्वारा चुनी गई संविधान सभा होगी।
• इसमें यह भी प्रस्ताव था कि देशी रियासतें नए संविधान को स्वीकार करने या न करने के लिए स्वतंत्र होगी ।
• क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को भारत के दोनों प्रमुख दलों- कॉंग्रेस व मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया।
• गाँधीजी ने इसे दिवालिया बैंक पर लिखा पोस्ट डेटेड चैक (Post dated cheque on a bankrupt bank) कहा।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् ब्रिटेन में क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर
पार्टी की सरकार बनी, जिसने लॉर्ड पैथिक लॉरेंस की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन (अन्य दो सदस्य सर स्टैफर्ड क्रिप्स तथा ए.वी. एलेक्जेंडर थे ) को 24 मार्च, 1946 को भारत भेजा।
• कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों की घोषणा 16 मई, 1946 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने की, जिसमें स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए संविधान सभा के गठन की व्यवस्था की गई ।
• इस रिपोर्ट में भारत के भावी संविधान के निर्माण के सिद्धान्तों एवं प्रक्रियाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया।
• इसके आधार पर संविधान सभा के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
26 जनवरी, 1950 से भारत ‘एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य’ बन गया।
संविधान सभा का गठन (Formation of Constituent Assembly)
कैबीनेट मिशन प्रस्ताव में संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 389
निर्धारित की गई जो निम्न प्रकार थे-
• ब्रिटिश प्रांत की विधान परिषदों द्वारा निर्वाचित सदस्य –292
• चीफ कमिश्नरी प्रांतों द्वारा निर्वाचित- 04
• देशी रियासतों के प्रतिनिधि- 93
• संविधान सभा के 296 सदस्यों (ब्रिटिश भारतीय प्रांतों व कमीशनरी क्षेत्र) का निर्वाचन भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत् गठित प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा अप्रत्यक्ष पद्धति से किया जाना था।
• संविधान सभा का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं हुआ था बल्कि प्रान्तीय विधानसभाओं का संविधान सभा के सदस्यों के चुनाव के लिए निर्वाचक मण्डल के रूप में उपयोग किया गया।
ब्रिटिश प्रांतों को उसकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में सीटें आवंटित की गई थी।
• स्थूल रूप से 10 लाख की जनसंख्या के लिए एक स्थान का अनुपात रखा गया था।
• प्रत्येक प्रांत के स्थानों को जनसंख्या के अनुपात में तीन प्रमुख सम्प्रदायों- मुस्लिम, सिक्ख तथा साधारण सम्प्रदाय में बाँटा गया था।
• प्रत्येक समुदाय के लिए आवंटित सीटों के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव प्रांतीय विधानसभाओं में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत पद्धति की आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया गया।
• संविधान सभा में देशी रियासतों के लिए आवटित 93 प्रतिनिधियों का चयन (मनोनयन ) रियासतों के प्रमुख (महाराजा/नवाब आदि) द्वारा किया गया।
कैबिनेट मिशन योजना 1946 द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों के तहत जुलाई-अगस्त, 1946 में संविधान सभा के ब्रिटिश शासित प्रांतों के 296 सदस्यों के निर्वाचन सम्पन्न हुए।
• ये चुनाव दलीय आधार पर लड़े गए।
• यह निर्वाचन अप्रत्यक्ष निर्वाचन था।
संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई तथा आंशिक रूप से नामांकित निकाय बनी।
• 11 ब्रिटिश प्रांतों के सदस्यों का चुनाव✔️
• देशी राज्यों के सदस्यों का नामांकन हुआ✔️
जुलाई-अगस्त 1946 में संविधान सभा के कुल 389 में से 296 सदस्यो के लिए हुए चुनावों में ब्रिटिश प्रांतों में :
• भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस को 208 सीटें एवं
• मुस्लिम लीग को 73 सीटें प्राप्त हुई।
संविधान सभा में निर्वाचित सदस्यों में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर बंगाल से चुने गये थे, जबकि महात्मा गांधी व मोहम्मद अली जिन्ना संविधान
सभा के लिए नहीं चुने गये थे।
3 जून, 1947 की माउण्टबेटन योजनानुसार 15 अगस्त, 1947 को देश के विभाजन के उपरांत भारतीय संविधान सभा की सदस्य संख्या 324 रह गई, जिसमें
• ब्रिटिश प्रांतों के लिए आरक्षित स्थान➤235
• देशी राज्यों के लिए आरक्षित स्थान ➤ 89
• पंजाब एवं बंगाल के जो भाग भारत में रह गए थे, उनके लिए नए सिरे से निर्वाचन हुए और निर्वाचित सदस्यों ने 14 जुलाई, 1947 को संविधान सभा में स्थान ग्रहण किया।
संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन
• 9 दिसम्बर 1946 को दिल्ली में शुरू हुआ,
• जिसमें डॉ. सच्चिदान्द सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
24 जनवरी, 1947 को एचसी. मुखर्जी को संविधान सभा का उपाध्यक्ष बनाया गया।
11 दिसम्बवर 1946 को हुई बैठक में
• संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया➤डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को
• संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया ➤बी.एन.राव को
मुस्लिम लीग द्वारा संविधान सभा की प्रथम बैठक से ही, संविधान सभा की कार्यवाहियों का बहिष्कार किया और पृथक राष्ट्र ‘पाकिस्तान‘ की मांग रखी गई।
• शुरुआत में समाजवादी भी संविधान सभा से परे रहे क्योंकि वे इसे अंग्रेजों की बनाई हुई संस्था मानते थे।
• इस कारण संविधान सभा के 82% सदस्य कांग्रेस पाटी के ही सदस्य थे।
उद्देश्य प्रस्तावः
13 दिसम्बर 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने नये संविधान के उद्देश्यों के विषय में संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया और इसी के साथ संविधान निर्माण की शुरुआत हुई।
• यह एक ऐतिहासिक प्रस्ताव था, जिसमें स्वतंत्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई तथा वह फ्रेमवर्क सुझाया गया था, जिसके तहत संविथान निर्माण का कार्य आगे बढ़ना था।
• इसमें भारत को एक ‘स्वतंत्र सम्प्रभु गणराज्य‘ घोषित किया गया था।
• इसी प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, संप्रभुता और एक सार्वजनीन पहचान जैसी बुनियादी प्रतिबद्धताओं को शामिल किया गया।इसने संविधान के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया।
• इसके परिवर्तित स्वरूप से संविधान की प्रस्तावना /उद्देशिका (Preamble) बनी।
Note::इस उद्देश्य प्रस्ताव को संविधान सभा ने 22 जनवरी 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया।
• स्वतंत्र भारत के संविधान की प्रस्तावना भी इन्हीं उद्देश्यों पर आधारित है। इसी मे संविधान का दर्शन निहित है।
देश के विभाजन के बाद भारत की संविधान सभा में 324 सदस्य थे परंतु बाद में केवल 299 सदस्य रह गये थे, जिनकी प्रथम बैठक 31 अक्टूबर, 1947 को हुई ।
इन सदस्यों में से निम्न 6 सदस्यों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही थी-
1. जवाहरलाल नेहरू
2. वल्लभभाई पटेल
3. राजेन्द्र प्रसाद
4. के.एम. मुंशी (गुजरात)
5. अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर (मद्रास)
6. भीमराव अम्बेडकर
भीमराव अम्बेडकर
• प्रख्यात विधिवेत्ता और अर्थशास्त्री
• संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष
• इनके पास सभा में संविधान प्रारूप को पारित करवाने की जिम्मेदारी थी।
इन 6 सदस्यों को निम्न दो प्रशासनिक अधिकारियों ने महत्त्वपूर्ण
सहायता दी-
1.बी.एन. राव
• ये भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे
• और इन्होंने अन्य देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करके कई चर्चा पत्र तैयार किए थे।
• इन्हें संविधान निर्मात्री सभा का विधि सलाहकार बनाया गया था।
2. एस. एन. मुखर्जी
• इनकी भूमिका मुख्य योजनाकार की थी।
• मुखर्जी जटिल प्रस्तावों को स्पष्ट व सरल विधिक भाषा में व्यक्त करने की क्षमता रखते थे।
संविधान निर्माताओं को प्रभावित करने वाले विचार :
• समाजवाद की स्थापना।
• केन्द्र को शक्तिशाली बनाने का विचार ।
• स्वतंत्रता की अपेक्षा सुरक्षा को अधिक महत्त्व।
• संविधान निर्माण का कार्य संविधान सभा ने विभिन्न समितियों के माध्यम से किया।
संविधान सभा की कार्यविधिः
परामर्श समिति के कार्य की सुविधा के लिए निम्न दो उपसमितियाँ बनाई गई थी-
1.मूल अधिकारों पर उपसमिति
• अध्यक्ष➤जे.बी. कृपलानी
2.अल्पसंख्यकों पर उपसमिति
• अध्यक्ष➤ एच.सी. मुखजी
संविधान सभा की विभिन्न समितियाँ
22 जनवरी 1947 को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिये विभिन्न 8 बड़ी एवं 15 छोटी समितियों का गठन किया।
प्रारूप समिति
• गठन ➤29 अगस्त, 1947 को
• अध्यक्ष➤डा. बी.आर.अम्बेडकर
• इस समिति को नए संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
• इसमें प्रारंभ में निम्न सात सदस्य थे-
1. डॉ. बी.आर. अम्बेडकर (अध्यक्ष)
2. एन. गोपालास्वामी अयंगर
3. अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर
4. डॉ. के.एम. मुंशी
5. सैयद मोहम्मद सादुल्ला
6. श्री बी. एल. मित्तर
7. डी.पी. खेतान
• 30 अगस्त, 1947 को प्रारूप समिति की प्रथम बैठक में डॉ. बी.आर अम्बेडकर को इस समिति का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।
• कुछ समय के बाद श्री. टी.टी. कृष्णामचारी ने डी.पी. खेतान एवं श्री.एन. माधवन राव ने श्री बी.एल. मित्तर का स्थान लिया।
• इसके अलावा श्री बी.एन. रॉव को संवैधानिक सलाहकार के रूप में शामिल किया गया।
संविधान का प्रथम प्रारूप
• विभिन्न समितियों के प्रस्तावों पर विचार-विमर्श के बाद प्रारूप समिति ने अक्टूबर 1947 में संविधान सभा के सचिवालय की परामर्श शाखा के सहयोग से संवैधानिक सलाहकार बी.एन. राव (बीनेगल नरसिंह राव) की देखरेख में संविधान का प्रथम प्रारूप तैयार किया।
• इसे फरवरी, 1948 में प्रकाशित किया गया ।
• भारत के लोगों को इस प्रारूप पर चर्चा करने और संशोधनों का प्रस्ताव देने के लिए 8 माह का समय दिया गया।
संविधान का दुसरा प्रारूप
• लोगों की शिकायतों, आलोचनाओं और सुझावों की रोशनी में प्रारूप समिति ने दुसरा प्रारूप तैयार किया, जिसे अक्टूबर, 1948 में प्रकाशित किया गया।
संविधान का अंतिम प्रारूप
• डॉ. बी. आर, अम्बेडकर ने सभा में 4 नवम्बर, 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया।
• इस दिन संविधान पहली बार पढ़ा गया।
• इसे प्रथम वाचन कहा जाता है।
• सभा में इस पर 4 नवम्बर, 1948 से 9 नवंबर तक (5 दिन) आम चर्चा हुई।
संविधान पर द्वितीय वाचन
• 15 नवम्बर, 1948 से अक्टूबर, 1949 तक (विचार विमर्श)
• इनमें संविधान के प्रत्येक पद पर विचार किया गया।
संविधान पर तृतीय वाचन
• तृतीय वाचन 14 नवम्बर, 1949 से शुरु हुआ।
• डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने ‘द कांस्टिट्यूशन ऐज सैटल्ड बाई द कांस्टीट्युएण्ट असेंम्बली बी पास्ड’ प्रस्ताव पेश किया।
• संविधान के प्रारूप पर पेश इस प्रस्ताव को 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया एवं उसी दिन संविधान को अंगीकार किया गया।
• उस दिन सभा में उपस्थित 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए ।
• इस प्रकार संविधान सभा ने देश का यह सर्वोच्च एवं सर्वोत्तम प्रलेख देश की जनता को समर्पित किया।
9 दिसम्बर, 1946 से 26 नवम्बर,1949 तक संविधान सभा को संविधान निर्माण का अपना कार्य पूर्ण करने में 2 वर्ष 11 माह व 18 दिन लगे।
संविधान की प्रस्तावना
• संविधान की प्रस्तावना में 26 नवम्बर, 1949 का उल्लेख उस दिन के रूप में किया गया है, जिस दिन भारत के लोगों ने संविधान सभा में संविधान को अपनाया।
• इस दिन अपनाए गए संविधान में प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद व 8 अनुसूचियाँ थी।
• प्रस्तावना को पूरे संविथान को लागू करने के बाद 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।
संविधान लागू होना :
• नागरिकता, चुनाव, तदर्थ संसद, अस्थायी व परिवर्तनशील नियम तथा कुछ अन्य प्रावधान- अनु. 5,6,7,8,9, 60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 व 393 आदि 26 नवम्बर, 1949 को स्वतः ही लागू हो गए तथा
संविधान के शेष प्रावधान –26 जनवरी, 1950 को लागू हुए।
• यह दिन (26 जनवरी, 1950) संविधान के लागू होने का दिन माना जाता है और इसकी स्मृति के रूप में इसे प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
• इस दिन को संविधान की शुरुआत के रूप में इसलिए चुना गया क्योंकि इसका अपना ऐतिहासिक महत्त्व है । इसी दिन 1930 में (26 जनवरी, 1930 को) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (Dec. 1929) में पारित हुए प्रस्ताव के आधार पर पूर्ण स्वराज्य दिवस एवं प्रथम स्वतंत्रता दिवस ( 26 जनवरी, 1930 ) मनाया गया था।
Note:संविधान की शुरुआत के साथ ही संविधान सभा भारतीय गणराज्य की अंतर्कालीन संसद के रूप में परिवर्तित हो गई।
संविधान की शुरुआत के साथ ही भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम,
1947 और भारत शासन अधिनियम, 1935 को समाप्त कर दिया गया।
संविधान सभा की अंतिम बैठक
• 24 जनवरी 1950 को हुई और
• इसी दिन संविधान सभा द्वारा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया।
• 26 जनवरी 1950 से भारत एक गणराज्य के रूप में स्थापित हो गया।
• संविधान के प्रारूप पर 114 दिन तक चर्चा हुई।
• इस ऐतिहासिक कार्य पर लगभग 64 लाख रुपये व्यय हुए।
भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा संविधान सभा का पुनर्गठन:
• इसके द्वारा संविधान सभा सम्प्रभु निकाय बन गई।
• स्वतंत्रता अधिनियम के द्वारा भारत स्वतंत्र हो गया तथा संविधान सभा स्वतंत्र भारत की विधायिका बन गई अर्थात् संविधान सभा ने 26 जनवरी, 1950 तक दो रूपों में कार्य किया-
1. विधायिका के रूप में :
• संविधान सभा ने देश के लिए कानून निर्माण का भी कार्य किया।
• संविधान सभा की बैठक बतौर विधायिका के रूप होती थी तब इसकी अध्यक्षता जी.वी. मावलंकर करते थे।
2. संविघान निर्माण का कार्य:
• संविधान सभा का गठन देश के संविधान के निर्माण के लिए हुआ था।
• अत: जब संविधान सभा की बैठक संविधान सभा के रूप में होती भी तब इसकी अध्यक्षता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद करते थे।
अन्तरिम संसद :
• 26 जनवरी, 1950 को संविधान सभा का अन्तरिम संसद के रूप में गठन हआ, जिसने 17 अप्रैल, 1952 तक काम किया।
(अर्थात् अंतरिम संसद का कार्यकाल 26 जनवरी, 1950 से 17 अप्रैल, 1952 तक रहा)।
• 17 अप्रैल, 1952 को भारत की प्रथम निर्वाचित संसद का गठन हुआ।
संविधान के गौरवपूर्ण मूल्यों को संविधान की प्रस्तावना में रखा गया है ।
• 1976 में 42 वें संविधान संशोधन द्वारा यथा संशोधित इस उद्देशिका या प्रस्तावना (Preambe) में संविधान के ध्येय और उसके उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन है।
उद्देशिका (Preamble)
“हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्राता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शूक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित
और आत्मार्पित करते हैं । “
Note-
• इस उद्देशिका में 1976 में हुए 42 वें संविधान संशोधन द्वारा समाजवादी, पंथ निरपेरक्ष तथा अखंडता शब्द जोड़े गए हैं।
• उद्देशिका में केवल एक ही बार (1976 में) संशोधन हुआ है।
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
• भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
• सर आइवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को ‘विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान‘ कहा है।
• मूल रूप से संविधान में प्रस्तावना, 22 भागों में 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी।
• वर्तमान में 26 भाग, 465 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं।
• विश्व के किसी भी संविधान में इतने अनुच्छेद नहीं है।
भारतीय संविधान के स्रोत (Sources of Indian Constitution)
• भारतीय संविधान में विश्व के कई देशों के संविधान के साथ भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों को शामिल किया गया है।
• संविधान का अधिकांश ढाँचागत भाग भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लिया गया है।
विभिन्न देशों के संविधान से लिए गए प्रावधान ::
भारतीय स्रोत
• (1) भारत सरकार अधिनियम, 1909
• (2) भारत सरकार अधिनियम, 1919
• (3) नेहरू रिपोर्ट, 1928
• (4) साइमन कमीशन रिपोर्ट 1930
• (5) भारत सरकार अधिनियम 1935
• (6) ब्रिटिश आयोगों के विभिन्न प्रतिवेदन
1935 का भारत शासन अधिनियमः
• (1) राष्ट्रपति की अध्यादेेश जारी करने की शक्ति
• (2) अनुच्छेद 143 (सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेने की शक्ति)
• (3) तदर्थ नियुक्तियाँ
• (4) नियंत्रक महालेखा परीक्षक
• (5) प्रशासनिक ब्योरे
• (6) संघीय लोक सेवा आयोग
• (7) राज्यपाल का पद एवं स्थिति
• (8) संघीय शासन प्रणाली (विषयों का बँटवारा)
(केन्द्र सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूर्ची में)
• (9) राष्ट्रपति की आपातकाल घोषित करने की शक्ति।
• (10) अटाॅॅर्नीं जनरल की नियुक्ति व शक्तियाँ
• (11) राष्ट्रपति की विधेयक पर स्वीकृति संबंधी प्रावधान
• (12) एकीकृत न्यायपालिका
विदेशी स्रोत
(A) ब्रिटेन के संविधान से
• (1) संसदीय शासन प्रक्रिया
• (2) विधि निर्माण प्रक्रिया
• (3) कार्यपालिका का विधानमंडल के प्रति उत्तरदायित्व एवं मंत्रिमंडलीय प्रणाली एवं द्विसदनवाद
• (4) संसदीय विशेषाधिकार
• (5) एकल नागरिकता
• (6) विधि का शासन
• (7) राष्ट्रपति का अभिभाषण
• (8) मंत्रिपरिपद् का सामू्हिक उत्तरदायित्च
• (9) विधि के समक्ष समानता
• (10) उच्च न्यायालय का प्रलेख (रिट) जारी करने का अधिकार
(B) संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से
(1) राष्ट्राध्यक्ष का निर्वाचन
(2) राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया
(3) उपराष्ट्रपति का पद
(4) उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि
(5) मौलिक अधिकार (अमेरिका के Bill of Rights से)
(6) न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धान्त
(7) न्यायपालिका की स्वतंत्रता
(8) संविधान संशोधन में राज्यों की विधायिका द्वारा अनुमोदन
(9) सामुदायिक विकास कार्यक्रम
(10) विधि का समान संरक्षण
(11) संविधान की प्रस्तावना का विचार
(C) कनाडा के संविधान से
• (1) संघीय शासन व्यवस्था जिसमें केन्द्र व राज्यों के मध्य शक्ति वितरण(शक्तिशाली केन्द्र की परिकल्पना जिसमें अवशिष्ट शक्तरयां केन्द्र को प्राप्त हों व राज्यों को केन्द्र में अलग होने का अधिकार प्राप्त नहीं है।)
• (2) राज्यों का संघ (Union of States) शब्दों का प्रयोग
• (3) राज्यपाल का राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करना
• (4) राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक आरक्षित करने का
• प्रावधान।
• (5) राज्य विधानमंडल के उच्च सदन के संगठन का रूप।
(D) आस्ट्रेलिया के संविधान से
• (1) समवर्ती सूची
• (2) प्रस्तावना की भाषा एवं उद्देशिका में निहित भावनाएँ
• (3) संसद के संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान
• (4) व्यापार, वाणिज्य एवं समागम की स्वतंत्रता संबंधी प्रावधान
(E) आयरलैण्ड के संविधान से
• (1) नीति निर्देशक तत्व्व
• (2) राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली (आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली)
• (3) राज्य सभा में राष्ट्रपति द्वारा सदस्यों के नामांकन का प्रावधान
(F) जर्मनी के संविधान से
• (1) आपातकालीन उपबंध व उस दौरान मूल अधिकारों के निलम्बन की राष्ट्रपति की शक्ति।
(G) फ्रांस के संविधान से
• (1) गणतांत्रिक व्यवस्था
• (2) लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति का प्रावधान
• (3) प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता व बंधुता का विचार
(H) दक्षिण अफ्रीका के संविधान से
• (1) संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया
• (2) राज्य सभा के सदस्यों की निर्वाचन प्रक्रिया
(I) सोवियत संघ के संविधान से
• (1) मूल कर्तव्य, पंचवर्षय योजनाएँ
• (2) प्रस्तावना में न्याय-सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समानता का विचार
(J) जापान के संविधान से
• अनुच्छेद 21 की शब्दावली, कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया
संविधान में भारत को प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य कहा गया है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार संविधान का उद्देश्य भारत में पप्रभुत्वसम्पन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करना है।
• प्रभुत्वसम्पन्न राज्य उसे कहते है जो बाह्य नियंत्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आंतरिक एवं विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता हो।
• लोकतंत्रात्मक शब्द से तात्पर्य ऐसी सरकार से है जिसका समुचा प्राधिकार जनता में निहित होता है और जो जनता के लिए, जनता में से तथा जनता द्वारा स्थापित की जाती है। देश का प्रशासन सीधे जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों चलाया किया जाता है।
• पंथनिरपेक्ष : यह शब्द संविधान के 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। “पंथ निरपेक्ष’ का तात्पर्य ऐसे राष्ट्र से है, जो किसी विशेष धर्म को राजधर्म के रूप में मान्यता प्रदान नहीं करता वरन् सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है।
• समाजवाद : यह शब्द भी 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।साधारणतया इस शब्द से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसमें उत्पादन के मुख्य साधन या तो राज्य के हाथ में होते है या उसके नियंत्रण में होते हैं। किन्तु भारतीय समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था पर बल देता है ।
एकात्मक तथा संघात्मक संविधानः
• भारत का संविधान न तो विशुद्ध संघात्मक है और न विशद्ध एकात्मक, बल्कि यह दोनों का सम्मिश्रण है।
• एकात्मक संविधान वह संविधान होता है, जिसके अंतर्गत सारी शक्तियाँ एक ही सरकार में निहित होती हैं, जो प्राय: केन्द्र सरकार होती है।
• प्रांतों को केन्द्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है। इसके विपरीत संघात्मक संविधान वह संविधान होता है, जिसमें शक्तियों का केन्द्र व राज्यों में विभाजन रहता है और दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
भारतीय संविधान में संघात्मक संविधान की विशेषताएँ
1. शक्तियों का विभाजन
2. संविधान की सर्वोच्चता
3. लिखित संविधान
4. संविधान की अपरिवर्तनशीलता
5. स्वतंत्र न्यायपालिका
भारतीय संविधान में एकात्मकता के निम्न लक्षण पाए जाते हैं-
1. सशक् केन्द्र
2. संविधान का लचीलापन
3. एक संविधान
4. इकहरी नागरिकता
5. एकीकृत न्यायपालिका
6. अखिल भारतीय सेवाएँ
7. आपातकालीन प्रावधान
8. राज्यपालों की नियुक्ति।
कठोर व लचीला संविधान
• संविधान की नम्यता और अनम्यता उसके संशोधन की प्रक्रिया पर निर्भर करती है।
• कठोर या अनम्य संविधान उसे माना जाता है जिसमें संशोधन करने के लिए विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता हो, उदाहरण के लिए अमेरिकी संविधान।
• लचीला या नम्य संविधान वह कहलाता है- जिसमें संशोधन आसानी से किया जा सकता हो जैसे ब्रिटेन का संविधान।
• भारत का संविधान न तो लचीला है और न ही कठोर बल्कि यह दोनों का सम्मिश्रण है ।
• संविधान में केवल कुछ ही उपबंध ऐसे हैं जिनमें परिवर्तन करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है जबकि अधिकतर उपबंधों में संसद द्वारा साधारण विधि द्वारा ही परिवर्तन किया जा सकता है।
सरकार का संसदीय रूपः
भारतीय संविधान ने संसदीय सरकार की स्थापना की है ।
• यह व्यवस्था केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों में एक जैसी है।
• सरकार का यह स्वरूप इंग्लैण्ड की सरकार के समान है।
• संसदीय प्रणाली में राष्ट्रपति का स्थान इग्लिण्ड के सम्राट के समान ही है। यह कार्यपालिका का नाममात्र का प्रधान होता है।
वास्तविक कार्यपालिका शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों में, जिसे मंत्रि परिषद कहते है, निहित होती है।
• समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है।
• मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होता है।
• मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है ।
संसदीय सम्प्रभुता एवं न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वयः
ससंदीय प्रभुसत्ता( अर्थात् संसद की प्रभुसत्ता)का सिद्धांत ब्रिटिश शासन प्रणाली की विशेषता है जबकि न्यायिक सर्वोच्चता का सिद्धांत अमरीकी शासन प्रणाली का लक्षण है।
• भारतीय संविधान निर्माताओं ने मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए भारतीय संविधान में संसदीय प्रभुसत्ता एंव न्यायिक सर्वोच्चता के समन्वय को अपनाया है।
मूल अधिकार ( Fundamental Rights ) :
भारतीय संविधान के भाग 3 में नागरिकों के मुल अधिकारों की व्यवस्था की गई है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में मुल अधिकारों की घोषणा संविधान की एक मुख्य विशेषता होती है ।
• मूल रूप से संविधान में 7 मूल अधिकार थे।
• वर्तमान में भारतीय संविधान में नागरिकों को 6 मूल अधिकार प्राप्त हैं।
• 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा सम्पत्ति का मूल अधिकार [अनु. 19(1)(च)] समाप्त कर उसे एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है।
राज्य के नीति निदेशक तत्व :
भारतीय संविधान के भाग 4 में अनु. 36 से 51 तक कुछ ऐसे निर्देशों का उल्लेख है, जिन्हें पूरा करना राज्य का पवित्रतम कर्तव्य माना गया है। इन्हें राज्य के नीति-निदेशक तत्व कहा जाता है।
• इनका उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
• ये सरकार को कुछ बातें करने और कुछ आदर्श प्राप्त करने का निर्देश देते है।
मौलिक कर्तव्य :
• मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया था।
• इन्हें स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वें संविधान संशोधन, 1976 के माध्यम से आंतरिक आपातकाल (1975-77) के दौरान शामिल किया गया।
• मौलिक कर्तव्य का उल्लेख संविधान के भाग 4 A ( या 4 क ) के अनु. 51( क ) में किया गया है।
42वें संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकों के 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए थे।
• 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा 11वाँ मूल कर्तव्य– अनु. 51 क (ट)[Article51A(K)] जोड़ा गया है, जिसमें, 14 वर्ष तक के बच्चों को माता-पिता/अभिभावकों द्वारा शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने को मूल कत्तव्य के रूप में जोड़ा गया है ।
• ये सभी मूल कर्तव्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।
इकहरी नागरिकता :
हमारा संविधान एक प्रकार से संघीय संविधान है।एवं सामान्यत: संघीय शासन व्यवस्था में दोहरी नागरिकता-एक संघ की तथा दूसरी राज्यों की होती है ।
संयुक्त राज्य अमेरिका में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था है। एक संयुक्त राज्य अमेरिका की तथा दूसरी उस प्रान्त की,जहाँ का कोई व्यक्ति निवासी है।
• किंतु भारतीय संविधान संघीय होते हुए भी इकहरी नागरिकता (Single citizenship) को मान्यता प्रदान करता है ।
• भारत का प्रत्येक नागरिक केवल भारत का नागरिक है न कि किसी प्रांत का, जिसमें वह रहता है। फलत: प्रत्येक नागरिक को नागरिकता से उत्पन्न सभी अधिकार, विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियाँ समान रूप से प्राप्त हैं।
Note:
• इकहरी नागरिकता का प्रावधान ब्रिटिश संविधान से लिया गया है ।
• जम्मू-कश्मीर राज्य इसका अपवाद था क्योंकि जम्मू -कश्मीर राज्य का स्वयं का पृथक संविधान था तथा भारतीय संविधान के अनु. 30 के तहत् उसे विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। वहाँ के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त थी। (1) भारत की (2) जम्मू-कश्मीर की
• परन्तु 5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति महोदय ने अध्यादेश जारी कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा (अनु. 370 के तहत्) समाप्त कर धारा 35ए समाप्त कर दी है तथा जम्मू-कश्मीर राज्य का विभाजन दो केन्द्र शासित प्रदेशों- (1) जम्मू-कश्मीर व (2) लद्दाख में कर दिया है। अत: अब जम्मू -कश्मीर के लोगों को भी भारत की एकल नागरिकता प्राप्त है।
वयस्क मताधिकार (Adult Frenchise):
भारतीय संविधान संसदीय शासन की व्यवस्था करता है ।
डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था वि संसदीय प्रणाली से हमारा अभिप्राय एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत से है।
• संविधान निर्माताओं ने सार्वजनिक वयस्क मताधिकार की पद्धति को अपनाने का निर्णय किया, जिसमें प्रत्येक वयस्क भारतीय को बिना किसी भेदभाव के मतदान के समान अधिकार प्रास्त हों।
• मताधिकार के प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन आयोग की संरचना की गयी है।
• भारतीय संविधान प्रत्येक वयस्क को मताधिकार प्रदान करता है, जिसका प्रयोग करके वह अपने प्रतिनिधियों को देश का शासन चलाने के लिए चुनता है।
• भारत का प्रत्येक नागरिक वह चाहे स्त्री हो या पुरुष, यदि 18 वर्ष की आयु का हो चुका है तो उसे निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार प्राप्त है । इस प्रकार भारतीय संविधान ने देश के सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान कर लोकतंत्र की स्थापना में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
• संविधान का केवल एक ही प्रावधान ऐसा था जो लगभग बिना किसी वाद-विवाद या बहस के पारित हो गया। यह प्रावधान ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार‘ का था, जिसका आश्य है धर्म, जाति, लिंग, शिक्षा व आयु के आधार पर बिना किसी भेदभाव के एक निश्चित उम्र प्राप्त सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार।
एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका:
एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है ।
• भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी सारे देश के लिए न्याय प्रशासन की एक ही व्यवस्था करता है, जिसके शिखर पर सर्वोच्च न्यायालय है।
इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय है।
राज्यों में उच्च न्यायालय के नीचे क्रमवार अधीनस्थ न्यायालय हैं जैसे
जिला अदालतें व अन्य निचली अदालतें।
स्वतंत्र न्यायपालिका का मुख्य कार्य केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों को निपटाना होता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा गया है।
• देश के विधानमंडलों द्वारा संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन में बनाई गई विधियों को उच्चतम न्यायालय असंवैधानिक घोषित कर निरस्त कर सकता है।
• उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया संविधान के उपबंधों का निर्वाचन अंतिम होता है ।
स्वतंत्र न्यायपालिका का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य नागरिकों के मूल अधिकारों की संरक्षा करना होता है।
• उच्चतम न्यायालय न केवल संविधान का वरन् नागरिकों के मूल अधिकारों का भी संरक्षक तथा जागरूक प्रहरी है।
• संविधान में न्यायपालिका को कार्यपालिका से बिल्कुल स्वतंत्र रखा गया है, जिससे यह निष्पक्ष और निर्भयतापूर्ण न्याय दे सके।
• इसलिए न्यायपालिका को केन्द्र तथा राज्यों दोनों में से किसी के भी अधीन नहीं रखा गया है।
संविधान की सर्वोच्चता :
• भारतीय संविधान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है ।
• संघ और राज्यों की समस्त सत्ताओं यथा विधायिका, कार्य पालिका व न्यायपालिका की सत्ताओं का मूल स्रोत संविधान है और ये सभी संविधान के अधीन हैं।
केन्द्रोन्मुख संविधानः
• भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि संघात्मक होते हुए भी उसमें केन्द्रीयकरण की सबल प्रवृत्ति है ।
• भारतीय संविधान में केन्द्र को सशक्त बनाया गया है।
• आपातकालीन प्रावधान संविधान को एकात्मक (केन्द्रोन्मुख) बनाते हैं ।
सरकार का त्रिस्तरीय ढाँचा :
• मूल रूप से अन्य संघीय प्रावधानों की तरह भारतीय संविधान में दो स्तरीय राजव्यवस्था (केन्द्र व राज्य) का प्रावधान था।
• बाद में वर्ष 1992 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा तृतीय स्तरीय (स्थानीय) सरकार का प्रावधान किया गया, जो विश्व के किसी और संविधान में नहीं है।
सरकार का त्रिस्तरीय ढाँचा निम्न प्रकार है-
I. संघ या केन्द्र सरकार
II. राज्य सरकार
III. स्थानीय सरकार (पंचायत/नगरपालिका)
• संविधान में एक नया भाग (9 ) तथा एक नई अनुसूची ( 11वीं) जोड़कर वर्ष 1992 के 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई ।
• इसी प्रकार से 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने एक नए भाग (9A ) तथा नई अनुसूची (12वीं ) को जोड़कर नगरपालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
कुछ राज्यों को विशेष दर्जा:
• सावधान के अनुच्छेद 370 के तहतु जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दण दियां गया था, जिसे राष्ट्रपति ने 2019 में समाप्त कर दिया।
विशेष उपबंध वाले राज्यों से संबंधित अनुच्छेद
• अनुच्छेद 371 के तहत् महाराष्ट्र व गुजरात राज्य के संबंध में विशेष उपबंध किये गये।
• अनुच्छेद 371क के तहत नागालैण्ड राज्य के संबंध में
• अनुच्छेद 371ख में असम राज्य के संबंध में,
• 371ग में मणिपुर राज्य के संबंध में,
• 371घ में आंध्रप्रदेश राज्य के संबंध में,
• 371ड में आंध्रप्रदेश राज्य में केन्द्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने के संबंध में,
• 371च में सिक्किम राज्य के संबंध में,
• 371छ में मिजोरम राज्य के संबंध में,
• अनुच्छेद 371ज में अरुणाचल राज्य के संबंध में तथा
• 371झ में गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध किये गये है।
कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल (Welfare State);
• संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के आदर्श से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि संविधान निर्माताओं का ध्येय भारत को कल्याणकरी राज्य के रूप में स्थापित करना था।
• केन्द्र एवं राज्य सरकारों का ध्येय देश की जनता की उन्नति, समृद्धि एवं विकास हेतु तथा उनके जीवन स्तर में सुधार एवं यथासम्भव आर्थिक समता की स्थापना रखा गया है।