संस्थागत नियोजन / Institutional Planning

आज के article में संस्थागत नियोजन से संबंधित निम्नलिखित विषयों के बारे में जानकारी दी गई है:

  • नियोजन का अर्थ
  • संस्थागत नियोजन का अर्थ एवं परिभाषा
  • संस्थागत नियोजन के उद्देश्य 
  • विद्यालय में शैक्षिक नियोजन के उद्देश्य 
  • संस्थागत नियोजन की आवश्यकता और महत्व 
  • संस्थागत/ विद्यालय योजना निर्माण के सिद्धांत 
  • विद्यालय योजना निर्माण के विभिन्न चरण

नियोजन का अर्थ:-

  • नियोजन का साधारण अर्थ किसी कार्य की योजना बनाने से है। 
  • जब हम किसी कार्य को पूर्ण गम्भीरता से सम्पादित करना चाहते हैं तथा उससे श्रेष्ठ परिणामों की अपेक्षा रखते हैं तब हम इस बात की विधिवत व लिखित रूप में योजना बनाते हैं कि हम क्या कार्य करने जा रहे हैं? उक्त कार्य को करने के पीछे हमारे उद्देश्य क्या हैं? हम अपने अपेक्षित कार्य को किस प्रकार सम्पादित करेगे? उक्त कार्य सम्पादन के लिए हमें किस प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होगी? इन संसाधनों की व्यवस्था कहाँ से होगी? कार्य सम्पादन में किस प्रकार की बाधाएं आ सकती हैं? इन बाधाओं का निवारण कैसे होगा? कार्य सम्पादन के क्या परिणाम प्राप्त होंगे? कार्य सम्पादन के उपरान्त भविष्य में किस प्रकार की योजना की आवश्यकता होगी? 

आदि प्रश्रों के विस्तृत व लिखित उत्तर देने की प्रक्रिया को ही हम “नियोजन” इस नाम से सम्बोधित कर सकते हैं।


मैसी के अनुसार,

“नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रबंधनकर्ता उपलब्ध संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग के बारे में सोचता है”

किसी भी कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है कि वह कार्य योजनाबद्ध तरीके से प्रारंभ किया जाए ।

  • किसी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व उसके सभी पहलुओं पर विस्तृत सोच -विचार कर निर्णय लेने की प्रक्रिया ही “नियोजन’ (Planning) कहलाती है। 

अच्छी योजना का निर्माण करने के बाद कार्यारंभ करने पर उस कार्य के क्रियान्वयन में बाधाएँ बहुत कम आती हैं। इसी कारण प्रत्येक विद्यालय एवं अन्य शैक्षिक संस्थाएँ अपने सभी कार्यक्रमों की पूर्व योजना तैयार करते हैं, जैसे ::

  • शिक्षण कार्य (Teaching) के बारे में योजना, 
  • सहापाठ्य क्रियाओं (Co-curricular Activities) की योजना, 
  • समय-सारणी (Time table) के संबंध में योजना, 
  • पाठ्यक्रम (Syllabus) का समयानुसार विभाजन तथा 
  • परीक्षा का आयोजन आदि से संबंधित योजनाएँ।

सभी विद्यालय अपनी इन्हीं योजनाओं के अनुसार विद्यालय का समस्त कार्य संपन्न करते हैं । कोई भी कार्य आरंभ करने से पहले उस कार्य की योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करने पर उस कार्य की सफलता सुनिश्चित होती है।

    • शिक्षा के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय स्तर, राज्य स्तर व जिला स्तर की शैक्षिक योजनाएँ बनाकर क्रियान्वित की जाती हैं ।
    • ये सभी योजनाएँ स्कूल स्तर की योजना ‘संस्थागत नियोजन’ (Insitutional Planning) या विद्यालय योजना पर आधारित होती हैं।

शैक्षिक जगत में योजना निर्माण (Panning) एक अपेक्षाकृत नवीन प्रयोग है, जो 1966 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग की सिफारिशों के बाद अमल में लाया जा रहा है ।

समुचित नियोजन के अभाव में पूर्व में कई राष्ट्रीय शैक्षिक योजनाएँ असफल सिद्ध हुई हैं । इनकी असफलता का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण इनका ऊपर से थोपा जाना भी रहा है। इन शैक्षिक योजनाओं के निर्माण में ज़मीनी स्तर (स्थानीय स्तर) के शिक्षा क्षेत्र से संबंधित लोगों के योगदान का अभाव होना था।

विकेन्द्रित शैक्षिक नियोजन में प्रत्येक विद्यालय की योजना बनाते समय उसकी आवश्यकताएँ, उसके छात्रों एवं शिक्षकों का विकास व उपलब्ध संसाधनों का पूरा ध्यान रखा जाता है । 

  • शैक्षिक क्षेत्र में विद्यालय स्तर की योजना ही ‘संस्थागत नियोजन’ कहलाती है।
  • ‘संस्थागत नियोजन’ किसी संस्था द्वारा निर्मित किये जाने वाले आगामी कार्यक्रमों का विवरण होता है। यह उन कार्यक्रमों व क्रियाकलापों का ब्यौरा है, जो विद्यालय आगामी शैक्षणिक सत्र में क्रियान्वित करना चाहता है।

भारत में सर्वप्रथम मुदालियर शिक्षा आयोग ( माध्यमिक शिक्षा आयोग) ने विद्यालयों के गुणात्मक विकास हेतु विद्यालय समुन्नयन योजना का निर्माण करने की सिफारिश की थी।

  • इसमें प्रत्येक विद्यालय को उपलब्ध साधनों (मानवीय, भौतिक एवं शैक्षिक) का परस्पर समन्वय करते हुए उनका पूर्ण नियोजित रूप से उपयोग करने की सलाह दी गई थी।

 

सम्पूर्ण नोट्स नीचे दी गई pdf में उपलब्ध हैं 👇

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