नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषा:
नेतृत्व का अर्थ–
शब्दकोश के अनुसार, ‘नेतृत्व करना’ (to lead) का अर्थ दों तरह से स्पष्ट किया गया है।
1. प्रथम अर्थ में नेतत्व का अर्थ ‘सर्वोत्तम होना’ /”अग्रणी होना’ / ‘प्रसिद्ध होना’ है।
2. द्वितीय अर्थ में इसका आशय, दूसरों को मार्ग दिखाना, किसी संगठन का प्रधान बनाना, समादेश देना या किसी समूह के लोगों को निर्देशित करना है।
Leadership (नेतृत्व) दो शब्दों ‘Lead एवं Ship’ से मिलकर बना है। ‘Lead’ का अर्थ होता है, सर्वोत्तम होना, अग्रणी होना, प्रसिद्ध होना या मार्गदर्शन प्रदान करना आदि एवं ‘ship’ का आशय किसी स्थिति या प्रस्थिति से होता है ।
अत: Leaderslhip किसी व्यक्ति का वह गुण या योग्यता एवं स्थिति है, जो दूसरों को राह दिखाने या मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य करती है।
नेतृत्व की परिभाषाएँ
जॉर्ज आर, टैरी के अनुसार,
“नेतृत्व, वह क्रिया है, जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति, उद्देश्यों के लिए व्यक्तियों को स्वेच्छा से कार्य करने हेतु प्रभावित करता है।
लिविंगस्टोन के शब्दों में,
“नेतृत्व, अन्य लोगों में किसी सामान्य उद्देश्य का अनुकरण करने की इच्छा को जागृत करने की योग्यता है।
पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार ,
“लोगों के दुष्टिकोण को उच्चतर स्तर पर उठाना, उनके निष्पादन को श्रेष्ठ बनाना तथा उनके व्यक्तित्व का सामान्य सीमा से परे निर्माण करना नेतृत्व है। “
- ऊपर दी हुई परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि नेतृत्व अन्य लोगों की धारणाओं एवं व्यवहार को प्रभावित करने की एक प्रक्रिया है।
- वह व्यक्ति जो ऐसा करने का प्रयास करता हैं वह भावी नेता है और जो उसके द्वारा प्रभावित होते हैं अथवा प्रभावित होने के लिए प्रयासरत होते हैं सम्भाव्य अनुयायी या अधीनस्थ कहलाते हैं।
विद्यालयी नेतृत्व का सम्प्रत्य/Concept of School Leadership
विद्यालयी नेतृत्व से आशय विद्यालय के विभिन्त लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय के मुख्य घटकों के मध्य नेतृत्व की योग्यता का समावेश करना है।
- विद्यालय एक संगठन है, जिसका निर्माण शैक्षिक उद्देश्यों की प्रप्ति के लिए किया जाता है । इस संगठन में विभिन्न मानवीय संसाधनों की व्यवस्था की जाती है, जो विभिन्न आधारों पर समूह के लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयत्न करते हैं ।
- नेतृत्व एक योग्यता है, जो किसी व्यक्ति में अपने संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति को सुनिश्चित करता है।
इस प्रकार विद्यालयी नेतृत्व विद्यालय की वह संगठनात्मक योग्यता है, जो विद्यालय के किसी प्रमुख व्यक्ति के पास सुनिश्चित की जाती है।
विभिन्न शोधकर्ताओं के अनुसार नेतृत्व के गुण/Leadership Traits
नेतृत्व के गुणों के संबंध में कई शोध व अध्ययन हुए हैं । इन शोधों में
चार्ल्स बर्ड (1940 ) ने तत्कालीन 20 नेताओं के गुणों का सर्वेक्षण किया तथा निष्कर्ष के रूप में 40 नेतृत्व गुणों की एक सूची प्रस्तुत की।
- इन्होंने यह पाया कि केवल 5 % गुण ही ऐसे थे, जो सभी नेताओं में पाए जाते थे।
स्टोगडिल (Stogdil:1945) ने नेतृत्व के गुणों से सम्बन्धित 124 अध्ययनों का विश्लेषण किया तथा इस विश्लेषण से उनके निष्कर्ष के अनुसार- “नेतृत्व करने वाला व्यक्ति औसत व्यक्ति से निम्नलिखित गुणों में श्रेष्ठ होता है”–
- बुद्धि,
- योग्यता,
- उत्तरदायित्व वहन करना,
- परस्पर-क्रिया तथा सामाजिक सहभागिता एवं
- उच्च सामाजिक-आर्थिक प्रास्थिति।
नेता की योग्यताएँ, कौशल आदि अधिकतर उन परिस्थितियों के अनुरूप होती हैं, जिनमें वह कार्य करता है।
स्टोगडिल ने 10 अन्य अध्ययनों के सर्वेक्षण में ,नेतृत्व के निम्न गुणों का भी नेतृत्व के साथ धनात्मक सम्बन्ध पाया:-
1. सामाजिकता(Sociability)
2. अगुवाई करना(Initiative)
3. कार्य में लगे रहना(Persistency)
4. यह जानना कि कार्य कैसे निकाला जा सकता है।(Knowing how to get things done)
5. आत्मविश्वास(Self confidence)
6. सावधानी रखना(Alertness)
7. ख्याति(Popularity)
8. परिस्थितियों के अनुरूप ढालना (Adaptabilty)
9. वाक पटुता(Verbal ability)
अध्ययन के उपर्युकत निष्कर्षों के साथ साथ स्टोगडिल बाद के अध्ययनों से इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कोई व्यक्ति कुछ गुणों की संख्या के आधार पर नेता नहीं होता, वरन् गुणों का जब एक विशिष्ट पैटर्न तथा परिस्थिति होती है, तभी वह नेता हो सकता है।
स्टोगडिल के अनुसार, नेतृत्व के स्वरूप को, विभिन्न कारकों के निरन्तर परिवर्तन एवं परस्पर प्रभाव से उत्पन्न मानना व जानना चाहिये, न कि किसी व्यक्ति के पद या प्रस्थिति के आधार पर।
मायर्स (Myers) (1954) ने भी नेतृत्व के क्षेत्र में हुए 200 से अधिक अध्ययनों का विश्लेषण किया।
मायर्स के अध्ययन के निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-
- 1. नेतृत्व का शारीरिक विशेषताओं से कोई महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध नहीं है।
- 2. नेतृत्व का बुद्धिलब्धि के साथ कोई महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध नहीं है।
- 3. नेतृत्व का महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध उस योग्यता से है, जिसके द्वारा नेता समूह की समस्याओं को सुलझाता है।
मायर्स ने जिन व्यक्तिगत गुणों का नेतृत्व के साथ धनात्मक सम्बन्ध पाया,वे निम्न हैं –
- 1. अन्तर्दृष्टि
- 2. अगुवाई करना
- 3. सहयोग करना
- 4. मौलिकता
- 5. महत्त्वाकाँक्षी
- 6. लगातार लगे रहना
- 7. संवेगात्मक स्थिरता
- 8. निर्णय शक्ति
- 9. लोकप्रियता
- 10.सम्प्रेषण कौशल
उपर्युक्त गुणों के अलावा कतिपय वे गुण भी हैं , जो समूह नेतृत्व व्यवहार से सम्बन्ध रखते हैं । ये गुण हैं –
- दायित्व निर्वाह (Responsibility)
- निष्ठा (Integrity)
हैम्फिल के अनुसार नेतृत्व कभी भी पूर्ण नहीं होता।
- सफल नेतृत्व करने वाले को सदा ही उन परिस्थितियों की विशेषता का ध्यान रखना होता है।
- व्यक्तियों की तरह ही ये परिस्थितियाँ भी भिन्न- भिन्न प्रकार की होती हैं तथा परिवर्तित होती रहती हैं।
हेनरी फेयोल ने नेतृत्व के निम्नलिखित गुणों का उल्लेख किया है
- स्वास्थ्य एवं शारीरिक स्वस्थता या क्षमता,
- समझदारी एवं मानसिक शक्ति,
- नैतिक गुण,
- समानता, तथा
- प्रबन्धकीय योग्यता।
लिण्डाल उर्विक ने नेतृत्च के पाँच प्रमुख गुणों पर बल दिया है-
1. साहस
2. इच्छा शक्ति
3. लोचशीलता
4. ज्ञान
5. ईमानदारी।
विद्यालयी प्रबंधन में नेतृत्व की शैलियाँ/ प्रकार
नेतृत्वकर्ताओं के आचरण के आधार पर नेतृत्व की तीन शैलियाँ सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं-
लोकतांत्रिक नेतृत्व शैली (Democratic leadership Style):नेतत्व की इस शैली को ‘सहभागिता शैली‘ भी कहा जाता है । इस प्रकार के नेतृत्व में संगठन के लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के क्रम में अधीनस्थों का पर्याप्त सहयोग लिया जाता है ।
निर्णय में नेता तथा अधीनस्थ मिलकर भूमिका निर्वहित करते हैं।
- नेता स्वयं अन्तिम निर्णय नहीं करता है बल्कि वह विभिन्न विकल्प सुझाता है ।
- समूह के सदस्यों को स्वतंत्रता होती है कि वे सुझाये गये विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करने की कोशिश करें।
नेता यह विश्वास करता है कि अधीनस्थों में क्षमताएँ एवं योग्यताएँ हैं।
- इस शैली में समुह के सभी सदस्यों का आदर होता है तथा उनमें परस्पर तनाव एवं संघर्ष नहीं पाये जाते हैं ।
- संगठन में पारदर्शिता को अपनाया जाता है। आलोचना या प्रशंसा के सम्बन्ध में नेता प्रायः तटस्थ रहता है।
- यद्यपि इस सहभागिता शैली से मनोबल एवं संतुष्टि बढ़ती है, किन्तु दोष यह है कि इस प्रकार के नेतृत्व में निर्णय देरी से हो पाते हैं तथा गुणवत्ता की कमी बनी रहती है।
लोकतंत्रीय (जनतंत्रीय) नेतृत्व आधुनिक युग का सबसे लोकप्रिय एवं प्रशंसित नेतृत्व माना जाता है।
- हमारे लिए इसका महत्व और भी अधिक है क्योंकि हमारे देश में लोकतंत्रीय शासन प्रणाली है।
- इस प्रणाली में जहाँ संभव हो वहाँ यथा आयोजन नीति-निर्धारण, कार्य विभाजन आदि में जन सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
- नेता उतना ही सफल माना जाता है, जितना वह अपने अनुयायियों से सहयोग ले पाता है ।
जनतंत्रीय नेतृत्व परिस्थितिजन्य होता है ।
- परिस्थिति के बदलने के साथ-साथ नेतृत्व भी बदल जाता है, क्योंकि एक परिस्थिति के लिए जिन कौशलों, क्षमताओं व संसाधनों की आवश्यकता होती है, दूसरी परिस्थिति में आवश्यक नहीं कि वे सभी उपयुक्त हों ।
- इस नेतृत्व शैली में प्राय: नेता समूह के मानदंड के अनुसार ही आचरण करता है।
- वह समूह के समग्र संसाधनों को समूह के विकास के लिए लगाता है तथा सभी के साथ मिलकर कार्य करने पर देता है।
- जहाँ अधिकारिक नेतृत्व में नेता सर्वेसर्वा होता है, वहाँ जनतंत्रीय नेता सहकर्मी होता है और समूह ही व्यक्ति के मूल्यांकन आदि के लिए उत्तरदायी होता है ।
निरंकुश या एकतंत्रीय शैली (Autocratic or Unitary System Leadership Style):
- यह लोकतांत्रिक शैली से एकदम विपरीत है ।
- इसमें एकतरफा (ऊपर से नीचे) संचार होता है क्योंकि निर्णयन में नेता अधीनस्थों से परामर्श नहीं लेता है । वह केवल नीति, निर्णय, आदेश तथा मार्गदर्शन निर्धारित करता, है तथा स्वयं ही उसमें परिवर्तन कर सकता है।
- संगठन में अन्य सभी को बिना कोई सवाल उठाए केवल नेता के आदेश मानने पड़ते हैं।
- ऐसे नेता, समूह से पृथक् तथा स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं तथा उन्हें अधीनस्थों की क्षमताओं पर विश्वास नहीं रहता है ।
- इस शैली में नेता के व्यवहार या निर्णय का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है।
- यह शैली अधीनस्थों के लिए कष्टदायी होती है , उनमें असंतोष उत्पन्न करती है तथा लक्ष्यों की प्राप्ति में कार्मिक उदासीनता को जन्म देती है , तथापि एकतंत्रीय नेतृत्वशैली से निर्णय शीघ्र हो जाते हैं ।
- नेतृत्व की इस शैली में प्रशासक (नेता) स्वयं ही सभी कार्यों (निर्णयों) की अगुवाई करता है, नीतियों पर नियंत्रण रखता है, कार्य की प्रणाली स्वयं निर्दिष्ट करता है, भविष्य को नियंत्रित करता है तथा वही पारितोषिक एवं दण्ड का निर्धारण करता है एवं अधीनस्थों का मूल्यांकन करता है।
- प्रारंभिक काल में नेतृत्व की यही शैली प्रचलित रही थी।
अहस्तक्षेपवादी नेतृत्व शैली (Laissez-Faire Leadership Style);
- जैसाकि नाम से ही स्पष्ट है , इस प्रकार के नेतृत्व में नेता कोई हस्तक्षेप नहीं करता है ।
- निर्णय लेने में नेता की सहभागिता बहुत कम होती है । अधीनस्थ
- स्वयं की प्रेरणा से ही कार्य करते हैं तथा उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त रहती है।
संगठन का कार्यकरण एकीकृत नहीं रहता है ।
- इस शैली में नेता स्वयं समूह के एक सदस्य जैसी ही भूमिका निभाता है, नेता जैसी नहीं ।
- यह शैली केवल अराजकता, अव्यवस्था, निराशा तथा अनुशासनहीनता को जन्म देती है।
अहस्तक्षेपीय नेतृत्व सही मायने में कोई नेतृत्व होता ही नहीं ।
- इसमें नेता को स्वयं की योग्यताओं पर कोई भरोसा नहीं होता, अत: वह स्वयं को कागजी कार्यवाही में व्यस्त रखता है।
- वह समूह के लोगों से किसी अन्य बहाने दूर रहता है तथा अधिकांश कार्य अपने सहयोगियों पर डाल देता है, परन्तु स्पष्ट निर्णय वे भी नहीं ले पाते हैं ।
अत: एक स्थिति ऐसी आ जाती है,जबकि संगठन नेतृत्व विहीन-सा लगने लगता है। यह स्थिति अराजक नेतृत्व की कही जा सकती है।
नौकरशाहीनुमा नेतृत्व शैली (Bureaucratic Leadership Style):
- प्रशासनिक संगठनों, विशेषत: विकासशील देशों के सरकारी तंत्र में इस प्रकार का नेतृत्व पाया जाता है।
- नेता अपनी निर्धारित संगठनात्मक पदस्थिति की भूमिका निभाता है, औपचारिक व्यवहार करता है तथा व्यक्तिगत नेता का रूप धारण किए रहता है।
- कानून, नियमों तथा प्रक्रियाओं से मोह रखने वाले इस प्रकार के नेता दैनन्दिन कार्यों को महत्त्व देते हैं।
- ऐसा नेता वरिष्ठ अधिकारियों की खुशामद तथा अधीनस्थों की उपेक्षा करता है।
- स्पष्ट है अधीनस्थ, ऐसे नेता से कानूनन जुड़े रहते हैं, अन्यथा अधीनस्थों में नेता के प्रति अवज्ञा एवं उदासीनता का भाव रहता है।
कूटनीतिक नेतृत्व (Diplomatic Leadership Style):
- इस प्रकार का नेतत्व प्रायः विदेश विभाग, प्रतिनिधि मण्डलों तथा बड़े उपक्रमों के व्यापारिक सम्बन्धों में पाया जाता है।
- नेता का स्वभाव कूटनीतिज़ो (Diplomats) जैसा हो जाता है।
- अतः कूटनीतिज्ञ नेतृत्व शैली के नेतृत्वकर्ता विकास कायों के संगठनों में सर्वथा अनुपयुक्त सिद्ध होते हैं ।
- इस प्रकार का नेता अवसरवादी तथा शोषणकर्ता माना जाता है।
- उसे अधीनस्थों पर विश्वास नहीं होता है।
विशेषज्ञ नेतृत्व शैली (Specialist Leadershiy Syle):
- इस प्रकार की नेतृत्व शैली में आजकल वृद्धि हुई है।
- संगठनो में कार्यरत विशेषज्ञ तकनीकी क्षेत्र के जानकार व्यक्ति जब नेता की स्थिति में आते हैं तो वे अपने विशिष्ट क्षेत्र के सम्बन्ध में ही अधिक सोचते एवं कार्य करते हैं।
- यद्यपि वह क्षेत्र से सम्बन्धित सहयोगियों या अधीनस्थों में लोकप्रिय होता है तथा सहयोगात्मक व्यवहार करता है, किन्तु अधीनस्थ परिवर्तन के विरुद्ध होते हैं ।
नेता तथा नेतृत्व के अन्य कई प्रकार भी हैं, जो भिन्न-भिन्न आधारों पर वर्गीकृत किए गए हैं । जैसे–रचनात्मक नेता ,विश्वासप्रेरक नेता,संस्थागत नेता, व्यक्तिगत नेता, अव्यक्तिगत नेता, कार्यात्मक नेता, पैतृक नेता,औपचारिक नेता तथा अनौपचारिक नेता इत्यादि
मैरी पार्कर फॉलेट के अनुसार नेतृत्व के तीन प्रकार-
1. पद से उपजा नेतृत्व,
2. व्यक्तित्व से उपजा नेतृत्व
3. कार्य से उपजा नेतृत्व
नेतृत्व शैली का एक दूसरा वरगीकरण अनुकरणकत्ताओं के आधार पर भी किया जा सकता है।
लिपहम ने तीन स्पष्ट नेतृत्व शैलियों का वर्णन किया है:
1. आदर्श मूलक सैद्धान्तिक/ NORMATIVE
2. वैयक्तिक या व्यक्तिमूलक/ PERSONAL
3. व्यवहारी मूलक सिद्धान्त/ TRANSACTIONAL
Note::इसी विभाजन को गेटजेल एवं गूबा (Getzels & Gubas) ने नोमोथिटिक(Nomothetic), इडियोग्राफिक (Idiographic) तथा ट्रांजेक्शनल(Transactional) कहा है।
आदर्शमूलक शैली (NORMATIVE STYLE):
- • इसके अन्तर्गत नेता के संगठन की भूमिकागत व्यवहार आते हैं ।
- • इस भूमिका में संगठन की अपेक्षाओं पर ध्यान दिया जाता है, व्यक्ति की अपेक्षाओं पर नहीं।
- • नेता देखता है कि संगठन की अपेक्षाओं के अनुसार अनुकरणकर्ता कार्य सम्पन्न करते हैं या नहीं ?
- • व्यक्ति के कार्यों का संगठन की अपेक्षाओं की पूर्ति के आधार पर मूल्यांकन होता है।
- • वस्तुत : यह शैली भूमिका सिद्धान्त (Role Theory) से प्रभावित है।
व्यक्तिमूलक शैली (PERSONAL STYLE)
- • इस शैली के अन्तर्गत व्यक्तिगत अपेक्षाओं पर ध्यान दिया जाता है। यह देखा जाता है कि व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति संगठन में हो रही है, अथवा नहीं।
- • इसके अनुसार संगठन से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका व्यक्ति की होती है । यदि व्यक्ति की भूमिका उपयुक्त हो,उसकी आवश्यकताओं की संतुष्टि हो, तो संगठन अच्छा विकास कर सकता है।
- • व्यक्ति को अधिक दायित्व दिए जाने चाहिए, बजाय इसके कि निर्दिष्ट अपेक्षाओं के अनुरूप उसे आचरण के लिए बाध्य किया जाए।
- • इस शैली के अनुसार संगठन में पूर्ण दक्षता प्राप्त करने के लिए उच्चाधिकारियों तथा अनुकरणकर्ताओं की भूमिका में अपेक्षाओं के अनुरूप व्यवहार होना आवश्यक है।
- • प्रत्येक व्यक्ति को अपनी वास्तविक व्यवहृत भृमिका का सही ज्ञान होना चाहिए तथा अपेक्षित भूमिका तथा वास्तविक व्यवहार की भूमिका के अंतर को कम से कम करने का प्रयत्न करना चाहिए।
व्यवहारी शैली (Transactional Style)
- • नेतृत्व की इस शैली के अनुसार जहाँ एक ओर व्यक्तिगत अपेक्षाओं पर ध्यान दिया जाता है, वही संगठन की उत्प्रेक्षाओं का भी ध्यान रखा जाता है।
- • इस प्रकार यह एक मध्यममार्गी नेतृत्व स्टाइल है, जिसमें व्यक्ति और संगठन की अपेक्षाओं के मध्य समन्वय रखने का यत्न किया जाता है।
- • इस स्टाइल के अनुरूप नेतृत्व की अन्तर्विरोधी व्यक्तित्व संबंधी तथा संगठन की अपेक्षाओं के बीच ताल-मेल रखने का यत्न करना होता है, अत: नेता के लिए यह बड़ी ही कठिन स्थिति होती है।
- • सही अपेक्षाओं का समन्वय ही उसकी कसौटी है।
- • अतः इसमें सफलता बहुत कुछ नेतृत्व की क्षमता पर निर्भर करेगी।
नेतृत्व का यह वर्गीकरण विभिन्न विद्वानों द्वारा इस प्रकार किया गया है-
विभिन्न विद्वानों द्वारा बताए गए नेतृत्व के प्रकार
अल्फॉर्ड एवं बीटी
1. बौद्धिक नेता
2. संस्थागत नेता
3. जनतंत्रीय नेता
4. तानाशाह नेता
5. विश्वासप्रेरक नेता
6. रचनात्मक नेता
जॉर्ज आर. टैरी
1. व्यक्तिगत नेतृत्व
2. अव्यक्तिगत नेतृत्व
3. निरंकुश नेतृत्व
4. जनतंत्रीय नेतृत्य
5. देशी नेतृत्व
6. पैतृक नेतृत्व
ऑरेन यूरिस
1. सभी तथ्यों को जानने वाला नेता
2. समन्वय करने वाला नेता
3. समस्या सुलझाने वाला नेता
4. जनोन्मुखी नेता
5. लक्ष्योन्मुखी नेता
क्रिस आर्गिरिस
1. निदेशात्मक नेता
2. अनुमतिबोधक नेता
3. सहभागी नेता
रॉबर्ट हाउस
1. निदेशात्मक नेतृत्व
2. मददगार नेतृत्व
3. सहभागी नेतृत्व
4. उपलब्ध उन्मुख नेतृत्व
मूने एवं रैली
1. नाममात्र के नेता
2. नियंत्रक
3. सच्चे संगठनवादी